Monday, January 05, 2009

बीतती रात

इक रात देखता रहा तेरी तस्वीर
कमरे के एक कोने में
याद नहीं क्या सोच रहा था
रात के उस सोने में

डर लगा
डर लगा कुछ भूल न जाऊं
इस बीतती रात के अंधेरे में
थोडी देर और देख लूँ
थोड़ा जी और भर लूँ
कहीं यह मुस्कान मिट न जाए
सुबह के कुछ होने से

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